
जब बेटी ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर तिरंगा फहराया तो आसमान गर्व से झुक गया। लेकिन, धरती पर उसका स्वागत खामोशी से हुआ। हरियाणा के हिसार जिले के छोटे से कस्बे बालक की बेटी रीना भट्टी ने एक ऐसी उपलब्धि हासिल की है, जिस पर हर भारतीय को गर्व है। ट्रैक्टर मैकेनिक की बेटी हिमपुत्री के नाम से मशहूर होने के बावजूद वह 20.5 घंटे में भारत की सबसे ऊंची चोटियों पर पहुंची और उसे भारत की सबसे तेज महिला पर्वतारोही का खिताब मिला। फिर भी, न तो अधिकारियों और न ही उसे वास्तव में वह सम्मान मिला, जिसकी वह हकदार थी।
हिमपुत्री की उड़ान
हिमपुत्री के नाम से मशहूर रीना भट्टी ,पिछले पांच साल में बीस से ज्यादा बार शिखर फतह कर चुकी है। कई बार तो ऐसा हुआ है, जिसे अब तक कोई भारतीय महिला पार नहीं कर पाई थी। उनका खिताब ऑक्सफोर्ड बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी दर्ज है, इसलिए उनकी उपलब्धियां यहीं खत्म नहीं हुईं। पहाड़ियों की सीमाएँ।
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बुलंदियों पर पहुंचाया तिरेंगे को
15 अगस्त 2022 को , जब राष्ट्र ‘हर घर तिरंगा’ मना रहा था, तब रीना ने इसे और उचाई दी । केवल 24 घंटों में, उन्होंने माउंट एल्ब्रस की दोनों रूसी चोटियों पर चढ़कर तिरंगा फहराया। वह इस यात्रा पर जाने वाली पहली भारतीय महिला थीं।
कठिन डगर पर फतेह की हासिल
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रीना ने बिना सरकारी मदद और प्रायोजक के पर्वतारोहण किया।
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सीमित साधनों में अकेले हर चोटी फतह की।
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स्नो लेपर्ड पीक, माउंट ज़ो ज़ोंगो, अमा डबलाम और कांग यात्से जैसी खतरनाक चोटियाँ पार कीं।
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उसकी यात्रा किसी फिल्म जैसी लगती है।
सफ़लता पर मौन ?
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सवाल उठता है: कमजोर बेटी की सराहना क्यों नहीं?
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सरकारें “बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ” की बात तो करती हैं।
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लेकिन देश का नाम रोशन करने वाली बेटियां नजरअंदाज क्यों होती हैं?
फिर मिशन की तलाश ?
रीना अभी भी अपने अगले मिशन के लिए प्रायोजकों की तलाश कर रही हैं। उन्हें कोई आधिकारिक सम्मान, पदक या सरकारी वित्तीय सहायता नहीं मिली। यह न केवल एक एथलीट के साथ अन्याय है, बल्कि कई बेटियों की बहादुरी पर भी सवालिया निशान है। रीना जैसी बेटियां समाज की सोच को नई ऊंचाई देने के साथ-साथ पहाड़ भी छूती हैं। अब समय है उनका सम्मान करने, उनकी मदद करने और हर चीज के लिए आभार जताने का